भूमिका— भारत एक ऐसा देश है जहाँ प्रत्येक कोने में आस्था, संस्कृति और इतिहास की गूंज सुनाई देती है। यहाँ के मंदिर केवल पूजा-स्थल नहीं, बल्कि प्राचीन काल की अद्भुत वास्तुकला, जीवन-दर्शन और सामाजिक परंपराओं के जीवंत प्रमाण हैं। ये मंदिर न केवल धार्मिक चेतना को जाग्रत करते हैं, बल्कि भारतीय सभ्यता की गहराई और विविधता का भी परिचय कराते हैं। देश के उत्तर से लेकर दक्षिण तक, पूरब से लेकर पश्चिम तक फैले ये मंदिर समय की कसौटी पर खरे उतरते हुए आज भी श्रद्धालुओं और पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। इस लेख में हम भारत के ऐसे ही 51 प्रमुख मंदिरों की विस्तृत जानकारी प्रस्तुत कर रहे हैं, जो न केवल भक्ति और आस्था का केंद्र हैं, बल्कि भारतीय गौरव और सांस्कृतिक धरोहर के प्रतीक भी हैं।
1. श्री राम मंदिर, अयोध्या – श्री राम मंदिर अयोध्या, उत्तर प्रदेश में स्थित एक भव्य हिंदू मंदिर है, जो भगवान श्रीराम के जन्मस्थान (राम जन्मभूमि) पर निर्मित है। यह मंदिर भारतीय सांस्कृतिक, धार्मिक और राष्ट्रीय आस्था का प्रतीक है। इसका निर्माण श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट द्वारा किया गया। मुख्य विशेषताएँ―धार्मिक महत्व― यह स्थान भगवान श्रीराम का जन्मस्थल माना जाता है और लाखों श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आते हैं। यह मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि भारतीय एकता, संस्कृति और विश्वास का प्रतीक भी बन चुका है।
2. वेंकटेश्वर मंदिर- इसे सात पहाड़ियों के मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह आंध्रप्रदेश के चित्तूर जिले के तिरूपति में स्थित है। यह भगवान श्री वेंकटेश्वर (श्री हरि विष्णु के अवतार) को समर्पित है। इसे तमिल शासक राजा तोंडाइमान ने बनवाया था। आगे चलकर चोल शासकों ने इस मंदिर को विकसित किया। यह मंदिर दान, धन-धान्य और संपत्ति के संदर्भ में विश्व का सबसे समृद्ध मंदिर है। ऐसा माना जाता है भगवान स्वयं यहाँ पर प्रकट हुए थे। अत: इसे 'स्वयं व्यक्त विग्रह' भी कहा जाता है। मंदिर में भगवान वेंकटेश्वर की विशाल प्रतिमा प्रतिष्ठित है, जिसे दर्शन करने के लिए भक्तों की अपार भीड़ होती है। यहाँ हर वर्ष लाखों की संख्या में तीर्थयात्री आते हैं।
3. वराह लक्ष्मी नरसिंह मंदिर- इसे सिम्हचलम मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह सिम्हचलम पहाड़ी (आंध्र प्रदेश) में स्थित है। यह भगवान वराह नरसिम्ह अर्थात् श्री हरि विष्णु के नरसिंह अवतार को समर्पित मंदिर है। अक्षय तृतीया को छोड़कर वर्षभर भगवान की यह मूर्ति चंदन के लेप से ढकी रहती है। अत: यह शिव लिंगम के समान प्रतीत होती है। यहाँ पर भगवान की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। चंदन लेप की विशेषता के कारण इसे तंत्र-मंत्र साधना के लिये प्रमुख स्थान माना जाता है।
4. श्री भ्रमराम्भा मल्लिकार्जुन मंदिर- यह मंदिर श्रीशैलम आंध्र प्रदेश में स्थित है। यह मन्दिर भगवान शिव और देवी पार्वती को समर्पित है। यह सातवाहन वंश का अभिलेखीय प्रमाण है। विजयनगर साम्राज्य के राजा हरिहर ने इस मंदिर का आधुनिक परिवर्धन करवाया था। यह शैववाद और शक्तिवाद दोनों ही संप्रदायों के लिये महत्वपूर्ण मंदिर है। यह ज्योतिर्लिंग और शक्तिपीठ दोनों है। यहाँ पर मुख्य देवता को चमेली का पुष्प (जिसे स्थानीय भाषा में 'मल्लिका' कहा जाता है) समर्पित किया जाता है। इसलिए यहाँ के मुख्य देवता को 'मल्लिकार्जुन' के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर विशेष रूप से तंत्र साधना और ध्यान के लिए प्रसिद्ध है।
5. सूर्य नारायण मंदिर- इसे अरसावल्ली सूर्य मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह भगवान सूर्य देव को समर्पित है। यह अरसावल्ली (आंध्र प्रदेश) में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण सातवीं सदी ईसवी में दक्षिण भारत के शासक देवेन्द्र शर्मा ने करवाया था। दिन के प्रारंभिक पहर में सूर्य का प्रकाश भगवान के चरणों को निर्देशित करता है। यह मंदिर सूर्य के प्रति श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है। मंदिर में सूर्य देव की मूर्ति अत्यंत भव्य और मनमोहक है, जिसमें सूरज की किरणें चमकती हुई प्रतीत होती हैं।
6. श्री रंगनाथस्वामी मंदिर- यह नेल्लोर (आंध्र प्रदेश) में स्थित है। यह भगवान रंगनाथस्वामी अर्थात् भगवान श्री हरि विष्णु के विश्राम करने वाले रूप को समर्पित है। इसका निर्माण 12वीं सदी ईसवी में करवाया गया था। इस मंदिर के द्वार के सामने एक विशाल मीनार है, जिसे 'गालिगोपुरम्' के नाम से जाना जाता है। इसका अर्थ 'पवन मीनार' होता है। यह 70 फीट ऊँचा है। इस मंदिर में भगवान श्री रंगनाथस्वामी की प्रमुख मूर्ति पूजा जाती है, जिसमें भक्तों को अर्चना और भक्ति का अहसास होता है। यह मंदिर वास्तुकला का अद्वितीय उदाहरण है।
7. वीरभद्र मंदिर- यह मंदिर आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले के लेपाक्षी में स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण 1530 ई. में विरूपन्ना नायक और वीरन्ना नामक दो भाइयों ने करवाया था। ये दोनों विजयनगर साम्राज्य में राज्यपाल थे। यह मंदिर विजयनगर वास्तुशिल्प शैली में बनवाया गया था। इसकी दीवारों और छतों पर भित्ति चित्र बनाये गये थे। मंदिर की विशालता और वास्तुशिल्प में बेजोड़ सुंदरता को देखना एक अद्भुत अनुभव है।
8. मालिनीथन- यह मंदिर अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तरी तट पर स्थित है। यह शक्ति रूपी देवी दुर्गा को समर्पित मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण 14वीं-15वीं सदी ईसवी के दौरान करवाया गया था। यह आर्य प्रभाव के दौरान ग्रेनाइट पत्थरों से निर्मित मंदिर है। यहाँ देवी दुर्गा की मूर्ति बहुत ही भव्य और आकर्षक है। यह स्थान एक प्रमुख धार्मिक स्थल के रूप में जाना जाता है।
9. कामाख्या मंदिर- इस मंदिर को कामरूप कामाख्या के रूप में जाना जाता है। यह मंदिर असम के पश्चिमी भाग में नीलाचल पहाड़ी में स्थित है। यह पहाड़ी गुवाहाटी के अंतर्गत आती है। यह मंदिर माँ कामाख्या को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण 8वीं से 17वीं सदी के मध्य करवाया गया था। यह 51 शक्तिपीठों में से सबसे पुराने शक्तिपीठों में से एक है। यह तांत्रिक उपासकों के लिये महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है। यहाँ पर देवी कामाख्या की पूजा विशेष रूप से तंत्र-मंत्र विधियों से की जाती है।
10. उमानंद देवलोई- यह मंदिर असम में ब्रह्मपुत्र नदी पर पीकॉक द्वीप पर स्थित है। यह द्वीप गुवाहाटी के अंतर्गत आता है। यह मंदिर भगवान उमानंद अर्थात् भगवान शिव को समर्पित है। इसका निर्माण अहोम राजा गदाधर सिंह ने करवाया था। इस शासक का शासनकाल 1681 से 1696 ईसवी तक था। यहाँ पर भगवान शिव को भयनंद के रूप में निवास करने वाला बताया गया है। यह मंदिर भस्मकूट पर्वत पर स्थित है और अपनी शांतिपूर्ण वातावरण के लिए प्रसिद्ध है।
11. नवग्रह मंदिर- यह मंदिर असम की चित्रसाल पहाड़ी पर स्थित है। यह पहाड़ी गुवाहाटी के अंतर्गत आती है। यह मंदिर नवग्रह को समर्पित है। इसे 18वीं सदी के उत्तरार्द्ध में अहोम राजा राजेश्वर सिंह ने बनवाया था। यह नौ प्रमुख खगोलीय पिण्डों को समर्पित मंदिर है। यहाँ पर प्रत्येक ग्रह की पूजा विशेष रूप से होती है और भक्त अपने जीवन में ग्रह दोषों से मुक्ति पाने के लिए यहाँ आते हैं।
12. नेघोरितिंग शिव देऊल- यह मंदिर असम राज्य के देरगाँव में स्थित है, जो भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर 8वीं से 9वीं सदी के बीच निर्मित हुआ था, और इसका पुनर्निर्माण 1687 में अहोम सम्राट द्वारा किया गया था। इस मंदिर की वास्तुकला अद्वितीय है, जिसमें प्राचीन भारत की स्थापत्य कला का अद्भुत मिश्रण देखने को मिलता है। इस मंदिर का मुख्य आकर्षण यहाँ निवास करने वाले रीसस बंदर हैं, जो मंदिर के वातावरण को विशेष बनाते हैं। यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि पर्यटकों के लिए भी एक आकर्षण स्थल बन चुका है।
13. हयाग्रीव माधव मंदिर- हयाग्रीव माधव मंदिर असम के हाजो में स्थित है, जो मोनीकूट पहाड़ी पर स्थापित है। यह मंदिर भगवान विष्णु के नरसिम्हा अवतार को समर्पित है। कुछ विद्वानों का मानना है कि इसका निर्माण पाल शासकों ने किया था, जबकि अन्य इतिहासकारों का कहना है कि इसे राजा रघुदेव नारायण ने 1583 में पुनर्निर्मित किया था। इस मंदिर का ऐतिहासिक महत्व बहुत गहरा है, क्योंकि यह हिन्दू और बौद्ध धर्मों का संगम स्थल माना जाता है। कुछ बौद्ध धर्मावलंबी यह मानते हैं कि यहीं पर भगवान बुद्ध ने निर्वाण प्राप्त किया था। यह मंदिर विशेष रूप से बौद्ध भिक्षुओं और हिन्दू श्रद्धालुओं के बीच एक साझा धार्मिक स्थल है।
14. मुण्डेश्वरी देवी मंदिर- मुण्डेश्वरी देवी मंदिर बिहार के कैमूर जिले में स्थित है, और यह भगवान शिव और देवी शक्ति को समर्पित है। यह मंदिर विशेष रूप से अपनी पुरानी वास्तुकला और धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर का निर्माण 105 ई. में हुआ था, और यह बिहार में सबसे पुराना नागर शैली का मंदिर माना जाता है। यहाँ की वास्तुकला अष्टकोणीय योजना में निर्मित है, जो इसे विशिष्ट बनाती है। इस मंदिर का धार्मिक महत्व आज भी जीवित है, और यहाँ भक्तगण नियमित रूप से पूजा-अर्चना करने आते हैं।
15. सोमनाथ मंदिर- सोमनाथ मंदिर, जो गुजरात के वेरावल में स्थित है, हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण स्थल है और इसे 12 ज्योतिर्लिंगों में पहला स्थान प्राप्त है। इस मंदिर का इतिहास अत्यधिक दिलचस्प और विद्रूप है क्योंकि इसे कई बार आक्रमणों के बाद नष्ट किया गया, लेकिन हर बार इसे पुनर्निर्मित किया गया। सबसे पहली बार इसे 649 ई. में महमद बिन कासिम द्वारा तोड़ा गया था। वर्तमान में जो मंदिर संरचना है, वह चालुक्य शैली में निर्मित है। यह स्थान न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि भारतीय सभ्यता के ध्वंस और पुनर्निर्माण के प्रतीक के रूप में भी प्रसिद्ध है।
16. द्वारकाधीश मंदिर- द्वारकाधीश मंदिर, जो गुजरात के द्वारका में स्थित है, भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है और यह चार धाम तीर्थस्थलों में से एक है। इस मंदिर की पुरानी संरचना लगभग 2200 वर्ष पुरानी है, और इसे पुष्टिमार्ग संप्रदाय के द्वारा पूजा जाता है। द्वारका का यह स्थल भगवान श्री कृष्ण की जीवित उपस्थिति से जुड़ा हुआ है, और यहाँ श्रद्धालु गहरी आस्था से आते हैं। यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति का प्रतीक भी है, जो भगवान कृष्ण के जीवन से जुड़े अनेक पहलुओं को दर्शाता है।
17. बहुचरा माता- बहुचरा माता का मंदिर गुजरात राज्य के मेहसाना जिले के बहुचराजी शहर में स्थित है। यह मंदिर विशेष रूप से हिजड़ा समुदाय के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि बहुचरा माता को इस समुदाय का संरक्षक देवता माना जाता है। इस मंदिर का निर्माण 1783 में हुआ था, और इसे आज भी इस समुदाय द्वारा पूजा जाता है। यह मंदिर धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण है, जहाँ समाज के विभिन्न वर्गों के लोग एक साथ आकर पूजा करते हैं और अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं।
18. नागेश्वर ज्योतिर्लिंग- नागेश्वर ज्योतिर्लिंग, जो गुजरात के द्वारका में स्थित है, भगवान शिव को समर्पित है और इसे 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। यह स्थल शिवभक्तों के लिए अत्यधिक पवित्र है और इसे विशेष धार्मिक महत्व प्राप्त है। यहाँ पर नियमित रूप से पूजा-अर्चना की जाती है और यह स्थान शिव पूजा के लिए प्रसिद्ध है। इसके दर्शन करने के लिए दूर-दूर से भक्तगण आते हैं।
19. मोढेरा का सूर्य मंदिर- मोढेरा का सूर्य मंदिर गुजरात के मोढेरा गाँव में स्थित है, और यह भगवान सूर्य को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण चालुक्य वंश के शासक भीम प्रथम ने 1026-27 ई. में करवाया था। यह मंदिर अपनी अद्वितीय स्थापत्य शैली और कला के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर का निर्माण सूर्य देव की पूजा के लिए किया गया था, और इसकी रचनात्मकता इसे अद्वितीय बनाती है। हालांकि वर्तमान में यहाँ पूजा का आयोजन नहीं किया जाता, फिर भी यह स्थल भारतीय पुरातत्व के प्रेमियों और पर्यटकों के लिए एक आकर्षण का केंद्र है।
20. भोरमदेव मंदिर- भोरमदेव मंदिर छत्तीसगढ़ राज्य के चौरागाँव में स्थित है और यह भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण 1089 ईस्वी में किया गया था। इसकी वास्तुकला बहुत ही विशिष्ट है, और इसे खजुराहो के मंदिरों और ओडिशा के कोणार्क सूर्य मंदिर की भांति कामुक मूर्तियों और कला के लिए जाना जाता है। इस कारण से इसे 'छत्तीसगढ़ का खजुराहो' कहा जाता है। यह मंदिर भारतीय कला और संस्कृति का अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत करता है।
21. दन्तेश्वरी मंदिर- दन्तेश्वरी मंदिर छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के दन्तेवाड़ा में स्थित है। यह मंदिर देवी दन्तेश्वरी को समर्पित है और इसे 14वीं सदी में स्थापित किया गया था। यह 51 शक्तिपीठों में से एक है और इसके बारे में कहा जाता है कि यहाँ देवी सती का दाँत गिरा था। इस मंदिर का धार्मिक महत्व अत्यधिक है और यह न केवल हिन्दू धर्म के श्रद्धालुओं के लिए, बल्कि लोककला और संस्कृति में रुचि रखने वालों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है।
p>22. महामाया मंदिर- यह मंदिर रतनपुर (छत्तीसगढ़) में स्थित है। यह देवी लक्ष्मी और सरस्वती का मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण 12वीं-13वीं सदी के दौरान रत्नपुरा के कलचुरी राजा रत्नदेव ने अपने शासनकाल में करवाया था। यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। प्रत्येक शक्तिपीठ में शक्ति और भैरव का एक मन्दिर होता है। यह स्थान धार्मिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि यहाँ भक्तों को मानसिक शांति और आंतरिक बल की प्राप्ति होती है। महामाया मंदिर में हर साल बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं, विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान।23. ज्वालामुखीदेवी का मंदिर- यह मंदिर कांगड़ा जिला, हिमाचल प्रदेश में स्थित है। यह देवी ज्वालामुखी का मंदिर है। यह 51 शक्तिपीठों में से एक है। यहाँ के अद्वितीय आंतरिक मंदिर में देवी की ज्वाला लगातार जलती रहती है, जिसे देखकर श्रद्धालु हैरान रह जाते हैं। मंदिर में पवित्र अग्नि लगातार जलती रहती है और यह स्थान विशेष रूप से उन लोगों के लिए आकर्षण का केन्द्र बनता है जो देवी के आशीर्वाद से जीवन में कठिनाइयों से मुक्त होना चाहते हैं।
24. बाबा बालकनाथ मंदिर- यह मंदिर हमीरपुर ज़िला, हिमाचल प्रदेश में स्थित है। यह मंदिर कलियुग में भगवान शिव के अवतार को समर्पित है। इस मंदिर के गर्भगृह में महिलाओं को प्रवेश करने की अनुमति नहीं है। यह मंदिर विशेष रूप से बाबा बालकनाथ के भक्तों के लिए पवित्र स्थल माना जाता है। मंदिर तक पहुँचने के लिए ऊँची पहाड़ी चढ़ाई करनी होती है, जिससे यह स्थल और भी रहस्यमय और आकर्षक बन जाता है।
25. बैद्यनाथ मंदिर- यह मंदिर झारखंड में स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। यह 12 ज्योतिर्लिंगों में एक है। बैद्यनाथ मंदिर को एक पवित्र स्थान माना जाता है क्योंकि यहाँ पर भगवान शिव का दिव्य रूप स्थित है। यहाँ की विशेषता यह है कि यहाँ की पूजा विधि बहुत सरल और भक्तिपूर्ण है। इस मंदिर में प्रत्येक वर्ष लाखों श्रद्धालु आते हैं और भगवान शिव की पूजा अर्चना करते हैं।
26. दुर्गा मंदिर- यह मंदिर ऐहोल (कर्नाटक) में स्थित है। यह मंदिर देवी दुर्गा को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण 7वीं-8वीं के दौरान चालुक्य वंश के शासकों द्वारा करवाया गया था। इस मंदिर की आकृति हाथी की पीठ से मिलती जुलती है, जो कि वास्तुकला का एक अद्भुत उदाहरण है। ऐहोल का यह मंदिर वास्तुकला के दृष्टिकोण से बहुत ही विशिष्ट और अद्वितीय है, और यह पर्यटकों और इतिहासकारों के लिए विशेष आकर्षण का केन्द्र है।
27. वीरुपाक्ष मंदिर- यह मंदिर हम्पी (कर्नाटक) में स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव के एक रूप को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण विजयनगर साम्राज्य के शासकों द्वारा करवाया गया था। हम्पी में स्मारकों के समूह को यूनेस्को ने अपनी विश्व विरासत स्थलों की सूची में शामिल किया है। यह मंदिर दक्षिण भारतीय वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, और इसके शिल्प कार्य और भव्यता को देखकर हर कोई मंत्रमुग्ध हो जाता है।
28. विट्ठलस्वामी मंदिर परिसर- यह मंदिर हम्पी (कर्नाटक) में स्थित है। यह मंदिर भगवान विट्ठलस्वामी अर्थात् भगवान श्री हरि विष्णु के अवतार को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण 15वीं-16वीं सदी के दौरान विजयनगर साम्राज्य के शासकों द्वारा करवाया गया था। यहाँ का प्रतिष्ठित पत्थरों का रथ और झूलता हुआ पवेलियन इस मंदिर को विशेष बनाता है। साथ ही, इस मंदिर की दीवारों पर विदेशी मूर्तियाँ भी उकेरी गई हैं, जो इसके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाती हैं।
29. होयसालेश्वर मंदिर- यह मंदिर हलेबिडु (कर्नाटक) में स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण 12वीं सदी के दौरान होयसाल साम्राज्य के शासकों द्वारा करवाया गया था। इस मंदिर की आकृति ताराकार है, और इसे विशेष रूप से वास्तुकला के अद्वितीय उदाहरण के रूप में देखा जाता है। यहाँ के शिल्प कार्य और मूर्तियाँ होयसाल काल की समृद्ध संस्कृति और कला को प्रदर्शित करती हैं।
30. चेन्नाकेशव मंदिर- यह मंदिर बेल्लूर (कर्नाटक) में स्थित है। यह मंदिर भगवान श्री हरि विष्णु को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण 12वीं सदी के दौरान होयसाल साम्राज्य के शासकों द्वारा करवाया गया था। यहाँ के शिल्प कार्य और वास्तुकला की डिज़ाइन बहुत ही आकर्षक है, और यह मंदिर विश्वभर में एक प्रमुख पर्यटन स्थल बन चुका है।
31. चेन्नाकेशव मंदिर- यह मंदिर सोमनाथपुरा (कर्नाटक) में स्थित है। यह मंदिर भगवान विष्णु के तीनों रुपों को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण 13वीं सदी के दौरान होयसाल साम्राज्य के शासकों द्वारा करवाया गया था। यहाँ की बांसुरी बजाते भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति की नक्काशियाँ अत्यधिक जटिल और आकर्षक हैं। इस मंदिर का वास्तुशिल्प और मूर्तिकला होयसाल साम्राज्य की कला का सर्वोत्तम उदाहरण है।
32. पद्मनाभनाभस्वामी मंदिर- यह मंदिर तिरुवनंतपुरम् (केरल) में स्थित है। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। इस मंदिर में प्रवेश करने के लिए सख्त ड्रेस कोड की आवश्यकता होती है। यहाँ पर 6 वर्षों में एक बार लक्ष दीपम त्योहार मनाया जाता है। इस मंदिर का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व बहुत बड़ा है। यहाँ पर स्थित भगवान विष्णु की मूर्ति सोने और रत्नों से आभूषित है। इस मंदिर की अन्दरूनी संरचना बहुत ही अद्भुत है और इसे पुरानी स्थापत्य कला का बेहतरीन उदाहरण माना जाता है।
33. सबरीमाला मंदिर- यह मंदिर परियार बाघ अभ्यारण्य (केरल) में स्थित है। यह मंदिर भगवान अय्यप्पन् अर्थात भगवान विष्णु और भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण 12वीं सदी से पहले करवाया गया था। यह मंदिर विश्व के सबसे बड़े वार्षिक तीर्थ स्थलों में से एक है। यहाँ पर जाने वाले तीर्थ यात्री काले और नीले वस्त्र पहनते हैं तथा तीर्थ यात्रा के पूर्ण होने तक दाढ़ी नहीं बनवाते हैं। यह मंदिर विशेष रूप से अपनी कठिन चढ़ाई और व्रत के कारण प्रसिद्ध है। सबरीमाला के दर्शन को एक कठिन तपस्या और आस्था का प्रतीक माना जाता है।
34. कंदरिया महादेव मंदिर- यह मंदिर खजुराहो (मध्य प्रदेश) में स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण 11वीं सदी के दौरान चंदेल शासकों द्वारा करवाया गया था। इस मंदिर की दीवारों पर कामुक मूर्तियाँ प्राप्त हो सकती हैं, जो खजुराहो के अन्य मंदिरों की तरह कला और स्थापत्य का अद्भुत उदाहरण हैं। इस मंदिर का शिखर बहुत ऊँचा और प्रभावशाली है, और यहाँ के अद्भुत शिल्प कार्य को देखकर कोई भी आश्चर्यचकित हो जाता है।
35. सास-बहू मंदिर- इसे सहस्त्रबाहु मंदिर भी कहा जाता है। यह मंदिर ग्वालियर (मध्य प्रदेश) में स्थित है। यहाँ पर दो अलग-अलग मंदिर भगवान विष्णु और भगवान शिव को समर्पित हैं। इन मंदिरों का निर्माण कच्छपघात वंश के राजा महिपाल ने 11वीं सदी के दौरान करवाया था। राजा की पत्नी भगवान विष्णु की पूजा करती थी, किन्तु राजा के पुत्र की पत्नी भगवान शिव की भक्त बन गई। इसलिये भगवान शिव का दूसरा मंदिर बनवाया गया। यह मंदिर अपनी स्थापत्य कला और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है।
36. ओंकारेश्वर मंदिर- यह खंडवा जिला (मध्य प्रदेश) में स्थित है। यह भगवान शिव को समर्पित मंदिर है। यह 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। ओंकारेश्वर को शिव के प्रमुख रूपों में से एक माना जाता है, और यह स्थान भक्तों के लिए मोक्ष की प्राप्ति के लिए एक पवित्र स्थल माना जाता है। इस मंदिर का महत्व इतना अधिक है कि यहाँ प्रत्येक वर्ष लाखों श्रद्धालु आते हैं। मंदिर के पास स्थित ओंकार पर्वत भी दर्शनीय है।
37. महाकालेश्वर मंदिर- यह मंदिर उज्जैन (मध्य प्रदेश) में स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण 13वीं सदी से पहले करवाया गया था। मुख्य देवता को स्वयंभू के रूप में जाना जाता है। यह 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक होने के साथ-साथ 51 शक्तिपीठों में से एक भी है। महाकालेश्वर मंदिर के दर्शन करने के लिए हर दिन हजारों श्रद्धालु आते हैं और यहाँ की भव्य आरती और पूजा विधि को देखकर श्रद्धा की गहरी अनुभूति होती है।
38. विट्ठल मंदिर या विठोबा मंदिर- यह मंदिर पंढरपुर (महाराष्ट्र) में स्थित है। यह मंदिर भगवान विट्ठल को समर्पित है, जिन्हें भगवान विष्णु और उनकी पत्नी रखुमाई का एक रूप माना जाता है। इस मंदिर का निर्माण 13वीं सदी के दौरान होयसाल साम्राज्य के शासकों द्वारा करवाया गया था। सन् 2014 में यह मंदिर पूजारी के रूप में पिछड़े वर्गों और महिलाओं को आमंत्रित करने वाला भारत का पहला मंदिर बना। यहाँ की वार्षिक तीर्थयात्रा को 'वारी-वारकरी' कहा जाता है, जो एक धार्मिक यात्रा है जो विशेष रूप से भक्तों के लिए अत्यधिक महत्व रखती है।
39. त्रिंबकेश्वर मंदिर- यह मंदिर नासिक (महाराष्ट्र) में स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण बालाजी बाजी राव द्वारा करवाया गया था। यह 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मंदिर गोदावरी नदी के स्त्रोत के पास स्थित है और यहाँ के दर्शन के बाद भक्तों को विशेष आशीर्वाद और पुण्य की प्राप्ति होती है। यहाँ की विशेषता यह है कि त्रिंबकेश्वर मंदिर का शिवलिंग तीन मुखों वाला है, जो एक अद्वितीय रूप है।
40. कोणार्क सूर्य मंदिर- यह मंदिर कोणार्क (ओडिशा) में स्थित है। यह मंदिर भगवान सूर्य देव को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण 13वीं सदी के दौरान पूर्वी गंग वंश के शासकों द्वारा करवाया गया था। इस मंदिर को 'ब्लैक पगोडा' के नाम से जाना जाता है। मंदिर के चारों ओर बनाए गए विशाल पहिए को धूपघड़ी कहा जाता है, जिसका उपयोग सूर्य के गति और समय की गणना के लिए किया जाता है। इस मंदिर का स्थापत्य कला और भव्यता बहुत ही आकर्षक है, और यह पर्यटकों के बीच एक प्रमुख आकर्षण का केन्द्र है।
41. लिंगराज मंदिर- यह मंदिर भुवनेश्वर (ओडिशा) में स्थित है। यह मंदिर भगवान हरिहर अर्थात् भगवान विष्णु और भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण 11वीं सदी के दौरान सोम वंश के शासकों द्वारा करवाया गया था। यह मंदिर देउल शैली में निर्मित है, जो ओडिशा की वास्तुकला का एक प्रमुख उदाहरण है। लिंगराज मंदिर में भगवान शिव के लिंग रूप की पूजा की जाती है और यह ओडिशा के सबसे महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक है।
42. करणी माता मंदिर- यह मंदिर देशनोक (राजस्थान) में स्थित है। यह मंदिर देवी दुर्गा को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण महाराजा गंगासिंह द्वारा करवाया गया था। इसे 'चूहों का मंदिर' भी कहा जाता है, क्योंकि इस मंदिर परिसर में 25,000 से भी अधिक चूहे पाये जा सकते हैं। इन चूहों को 'काबा' कहा जाता है, और यहाँ के लोग इन चूहों को धार्मिक दृष्टि से पूजते हैं। यह मंदिर धार्मिक श्रद्धा और अनूठी परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है।43. हजार स्तंभ मंदिर- यह मंदिर हनमकोंडा (तेलंगाना) में स्थित है। यह मंदिर भगवान विष्णु, भगवान शिव और भगवान सूर्य देव को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण 12वीं से 14वीं सदी के मध्य काकतीय वंश द्वारा करवाया गया था। इस मंदिर का आकार ताराकार तथा भीतर तीन मंदिर हैं। इसमें 1000 से भी अधिक स्तंभ हैं, जो इसकी वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। मंदिर का हर स्तंभ विभिन्न देवी-देवताओं और धार्मिक दृश्यों से सुसज्जित है।
44. रामप्पा मंदिर- यह मंदिर तेलंगाना के वारंगल जिले के पास स्थित है। यह मंदिर भगवान रामलिंगेश्वर को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण 11वीं सदी के दौरान काकतीय वंश के शासकों द्वारा करवाया गया था। यह मंदिर अपनी जटिल नक्काशी, सुंदर शिल्पकला और वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ की प्रमुख मूर्तियाँ रामप्पा, नंदी और अन्य देवताओं की हैं। इसके अलावा, यह मंदिर यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है।
45. शोर मंदिर- यह मंदिर महाबलीपुरम् (तमिलनाडु) में स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण 8वीं सदी ईसवी में पल्लवों के द्वारा करवाया गया था। यह मंदिर अपने अद्भुत वास्तुकला और प्राचीन पत्थरों से काटकर बनाए गए मंदिरों का एक अद्वितीय उदाहरण है। इसे यूनेस्को ने अपनी विश्व विरासत धरोहर में सम्मिलित किया है। इस मंदिर के अद्वितीय शिल्प और धार्मिक महत्ता के कारण यह स्थान एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है।
46. मीनाक्षी मंदिर- यह मंदिर मदुरै (तमिलनाडु) में स्थित है। यह मंदिर देवी पार्वती और भगवान सुन्दरेश्वर (शिव) को समर्पित है। 16वीं सदी में इस मंदिर का पुनःनिर्माण करवाया गया था। यह मंदिर अपने विशाल प्रकरम और एक हजार स्तंभों वाले हॉल के लिए प्रसिद्ध है। मीनाक्षी मंदिर में स्थित प्रमुख मूर्तियाँ देवी मीनाक्षी और भगवान सुन्दरेश्वर की हैं, और यहाँ की नक्काशी और चित्रकला भारतीय संस्कृति का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करती हैं।
47. मुरुगन मंदिर- यह मंदिर पलनी (तमिलनाडु) में स्थित है। यह मंदिर भगवान मुरुगन अर्थात् भगवान कार्तिकेय को समर्पित है। माना जाता है कि इस मंदिर में मुख्य देवता की मूल मूर्ति अत्यधिक विषैली जड़ी-बूटीयों का उपयोग करके बोग सिध्दार से बनाई गई है। इसकी उपस्थिति मात्र से लोग मर जाते हैं, इस कारण यह मंदिर विवादों में रहा है। पलनी की पहाड़ियों पर स्थित यह मंदिर हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है, जहाँ प्रत्येक वर्ष लाखों श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं।
48. बृहदेश्वर मंदिर- यह मंदिर तंजावुर (तमिलनाडु) में स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण 1010 ईसवी में राजराज प्रथम द्वारा करवाया गया था। यह चोल वास्तुकला का एक भव्य उदाहरण है, और यह भारत के विशालतम मंदिरों में से एक है। इस मंदिर की दीवारों पर चोल भित्तिचित्र निर्मित किये गये थे, जो इस समय की शिल्पकला का प्रमाण हैं। यह मंदिर प्राचीन स्थापत्य कला का एक अद्भुत उदाहरण है और यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है।
49. रंगनाथस्वामी मंदिर- यह मंदिर श्रीरंगम् (तमिलनाडु) में स्थित है। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। यह मंदिर कावेरी नदी के एक द्वीप पर अवस्थित है और यह भगवान विष्णु के 108 दिव्य देशम मंदिरों में से एक माना जाता है। इस मंदिर का क्षेत्रफल विशाल है और यह भगवान रंगनाथ (विष्णु के एक रूप) को समर्पित है। यह मंदिर हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है।
50. उनाकोटी गुफा मंदिर- यह मंदिर त्रिपुरा राज्य के उनाकोटी जिले की गुफाओं में स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और इसका निर्माण 600 से 700 ईसवी के मध्य हुआ था। इस स्थान पर चट्टानों पर अद्भुत नक्काशी और भित्ति चित्र देखे जा सकते हैं। इन गुफाओं में भगवान शिव की विशाल मूर्तियाँ और अन्य देवी-देवताओं की तस्वीरें उकेरी गई हैं, जो उस समय की शिल्पकला का अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत करती हैं।
51. विश्वनाथ मंदिर- यह मंदिर वाराणसी (उत्तर प्रदेश) में स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और इसे 12 ज्योतिर्लिंगों में एक माना जाता है। इसका निर्माण 1780 ईसवी में रानी अहिल्याबाई ने करवाया था। यह मंदिर काशी के प्रमुख तीर्थस्थलों में एक है और यहाँ प्रतिदिन लाखों श्रद्धालु आते हैं। इस मंदिर की धार्मिक महत्ता और काशी की संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा होने के कारण इसे एक प्राचीन और पवित्र स्थल माना जाता है।
52. दक्षिणेश्वर मंदिर- यह मंदिर कोलकाता (पश्चिम बंगाल) में स्थित है। यह मंदिर देवी काली को समर्पित है और इसका निर्माण 1855 ईसवी में रानी रासमणि द्वारा करवाया गया था। इसे आध्यात्मिक संत रामकृष्ण परमहंस द्वारा स्थापित किया था। रामकृष्ण परमहंस ने इस मंदिर में देवी काली की पूजा की और उनके अद्वितीय अनुभवों के कारण यह मंदिर विशेष धार्मिक महत्व रखता है। यह मंदिर हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थल है और यहाँ प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं।
आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।
(I hope, the above information will be useful and important.)
Thank you.
R.F. Tembhre
(Teacher)
EduFavour.Com
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