नाटक एक दृश्य काव्य है। यह एक अभिनय परक विधा है। इसमें संपूर्ण मानव जीवन का रोचक और कुतूहल पूर्ण वर्णन किया जाता है। नाटक का आनंद दर्शक द्वारा अभिनय देखकर लिया जाता है। नाटक को इस प्रकार भी परिभाषित किया जा सकता है– "जब किसी कथा का रंगमंच पर अभिनेताओं द्वारा प्रदर्शन (अभिनय) किया जाता है, तो उसे नाटक कहते हैं।" वर्तमान में सभी पुराने नाटकों का मंचन किया जा रहा है। 19वीं शताब्दी तक लिखे गए हिंदी के प्रमुख नाटकों को दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है–
1. साहित्यिक नाटक
2. रंगमंचीय नाटक।
हिन्दी के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।
गोस्वामी तुलसीदास– जीवन परिचय एवं काव्यगत विशेषताएँ
हिंदी साहित्य के रंगमंचीय नाटकों का आरंभ भारतेंदु हरिश्चंद्र के समय से हुआ था। भारतेंदु की रचनाओं के साथ ही हिंदी नाट्य साहित्य की परंपरा प्रारंभ हो गई थी। यह परंपरा वर्तमान में भी चल रही है। हिंदी नाटक साहित्य का काल विभाजन विद्वानों ने अनेक प्रकार से किया है। नाटक साहित्य के विकास को मुख्य रूप से चार भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है–
1. भारतेंदु काल
2. संधि काल
3. प्रसाद युग
4. प्रसादोत्तर युग (वर्तमान युग)।
हिन्दी के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।
नई कविता– विशेषताएँ एवं प्रमुख कवि
इस युग के प्रमुख नाटककार भारतेंदु हरिश्चंद्र थे। वे समाज सुधार और देशप्रेम की भावना से प्रेरित थे। इसलिए उन्होंने देशभक्ति से संबंधित अनेक नाटकों की रचनाएँ कीं। भारतेंदु काल के नाटकों का मूल उद्देश्य केवल दर्शकों का मनोरंजन करना ही नहीं बल्कि जनमानस में जागृति लाना और आत्मविश्वास भरना भी था। इस युग के प्रमुख नाटककार निम्नलिखित हैं–
1. लाला श्रीनिवास दास
2. बालकृष्ण भट्ट
3. राधाचरण गोस्वामी
4. राधा कृष्ण दास
5. किशोरीलाल गोस्वामी।
हिन्दी के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।
प्रयोगवाद– विशेषताएँ एवं महत्वपूर्ण कवि
इस युग में भारतेंदु युग के नाटकों की पद्धतियाँ चलती रहीं, किंतु कुछ नवीन शैलियों ने भी जन्म लिया। संधिकाल के नाटकों की परंपरा के सबसे महत्वपूर्ण नाटककार बदरीनाथ भट्ट थे। इनके अलावा जयशंकर प्रसाद भी महत्वपूर्ण नाटककार थे। 'करुणालय' नामक नाटक की रचना संधिकाल में ही की गई थी। इस काल में बंगाली, अंग्रेजी, संस्कृत भाषाओं में लिखे गए नाटकों का हिंदी भाषा में अनुवाद किया गया था।
हिन्दी के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।
प्रगतिवाद– विशेषताएँ एवं प्रमुख कवि
प्रसाद युग को नाटक के इतिहास का स्वर्ण युग माना जाता है। इस युग के प्रवर्तक जयशंकर प्रसाद हैं। उन्होंने हिंदी नाटक साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके अधिकांश नाटक ऐतिहासिक हैं। उनके नाट्य विधान में नवीनता झलकती है। प्रसाद युग के नाटकों में समकालीन परिवेश को चित्रित किया गया है। तकनीकी दृष्टि से प्रसाद युग के नाटकों का बहुत विकास हुआ। इस काल में ऐतिहासिक नाटकों की अधिकता रही। इतिहास और कल्पना के समन्वय से वर्तमान को नवीन दिशा दी गई। प्रसाद युग के प्रमुख नाटककार निम्नलिखित हैं–
1. वियोगी हरि
2. दुर्गादत्त पांडे
3. मिश्र बंधु
4. कौशिक
5. सुदर्शन
6. पांडेय बेचन शर्मा उग्र
7. गोविंद वल्लभ पंत
8. जगन्नाथ प्रसाद मिलिंद
9. सेठ गोविंद दास
10. ब्रजनंदन सहाय
11. लक्ष्मी नारायण मिश्र।
हिन्दी के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।
रहस्यवाद (विशेषताएँ) तथा छायावाद व रहस्यवाद में अंतर
इसे वर्तमान युग के नाम से भी जाना जाता है। इस युग में समस्याओं से संबंधित नाटकों की रचनाएँ की गईं। इन नाटकों में मुख्य रूप से मध्यमवर्गीय दांपत्य जीवन की समस्याओं को चित्रित किया गया है। नये और पुराने जीवन मूल्यों के मध्य संतुलन स्थापित करने के प्रयास किए गए हैं। प्रसादोत्तर युग में जीवन में विश्वास और आस्था बनाए रखने वाले नाटकों का सृजन किया गया है।
हिन्दी के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।
छायावाद– विशेषताएँ एवं प्रमुख कवि
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् देश में सांस्कृतिक और कलात्मक पुनर्जागरण आरंभ हुआ। इससे नाटक और रंगमंच का भी विकास हुआ। देश के विभिन्न भागों में नाटक साहित्य का विकास होने लगा। फलस्वरुप बहुत से नाटककार अनेक नाटकों की रचनाएँ करने लगे। नाट्य प्रदर्शन की विविध कलाओं का विकास हुआ। गीत नाट्य, रेडियो रूपक, प्रहसन आदि की भी रचनाएँ की गई। रंगशालाओं का निर्माण किया गया और दर्शक-समाज का एक संगठन के रूप में विकास हुआ। आधुनिक युग में ऐतिहासिक, प्रेम प्रधान और पौराणिक नाटक लिखे गए। इन नाटकों के अलावा भाव नाट्य और गीति नाट्य की रचनाएँ भी की गई। ये सभी उत्कृष्ट रचनाएँ प्रसाद और परिवर्ती लेखकों की देन हैं। आधुनिक युग के प्रमुख नाटककार निम्नलिखित हैं–
1. चतुरसेन शास्त्री
2. सेठ गोविंद दास
3. किशोरी दास वाजपेयी
4. हरिकृष्ण प्रेमी
5. गोविंद वल्लभ पंत
6. जगन्नाथ प्रसाद मिलिंद।
हिन्दी के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।
मैथिलीशरण गुप्त– कवि परिचय
नाटक के प्रमुख तत्व निम्नलिखित हैं–
1. कथावस्तु
2. कथोपकथन अथवा संवाद
3. देशकाल और वातावरण (संकलन-त्रय)
4. अभिनेता
5. पात्र और चरित्र चित्रण
6. भाषा-शैली
7. उद्देश्य।
हिन्दी के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।
हिन्दी का इतिहास– द्विवेदी युग (विशेषताएँ एवं कवि)
हिंदी के प्रमुख नाटककार एवं उनकी महत्वपूर्ण रचनाएँ निम्नलिखित हैं–
1. भारतेंदु हरिश्चंद्र– विद्या सुंदर, प्रेम जोगिनी, वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति।
2. जयशंकर प्रसाद– चंद्रगुप्त, स्कंदगुप्त, ध्रुवस्वामिनी।
3. लाला श्रीनिवास दास– श्री प्रहलाद चरित्र, संयोगिता स्वयंवर।
4. विष्णु प्रभाकर– डॉक्टर, टूटते परिवेश, युगे-युगे क्रांति।
5. लक्ष्मी नारायण मिश्र– मुक्ति का रहस्य, सन्यासी, सिंदूर की होली।
6. मोहन राकेश– आषाढ़ का एक दिन, आधे-अधूरे, लहरों के राजहंस।
7. जगदीश चन्द्र माथुर– कोणार्क, पहला राजा, शारदीया।
8. उपेन्द्र नाथ अश्क– उड़ान, स्वर्ग की झलक, छठा बेटा।
9. उदय शंकर भट्ट– दाहर, नया समाज, मुक्तिपथ।
हिन्दी के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।
हिंदी का इतिहास– भारतेन्दु युग (विशेषताएँ एवं प्रमुख कवि)
आशा है, उपरोक्त जानकारी आपके लिए उपयोगी होगी।
धन्यवाद।
R F Temre
rfcompetition.com
आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।
(I hope, the above information will be useful and important.)
Thank you.
R.F. Tembhre
(Teacher)
EduFavour.Com
Recent Posts
Categories
Subcribe
Copyright © 2025 - All Rights Reserved - Edu Favour