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शब्द सम्हारे बोलिये– कबीरदास

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"अमृतवाणी"

शब्द सम्हारे बोलिये, शब्द के हाथ न पाँव।
एक शब्द औषधि करे, एक शब्द करे घाव।

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संदर्भ

प्रस्तुत पद्यांश 'अमृतवाणी' नामक शीर्षक से लिया गया है। इसकी रचना कबीरदास ने की है।

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प्रसंग

प्रस्तुत पद्यांश में कबीरदास जी ने मनुष्य को उसकी भाषा पर संयम रखने की सलाह दी है।

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महत्वपूर्ण शब्द

सम्हारे- सँभालकर, औषधि- दवा, घाव- आघात।

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व्याख्या

कबीरदास जी कहते हैं कि मनुष्य को सोच समझकर बोलना चाहिए। शब्द के हाथ पैर नहीं होते, किंतु उस शब्द का उसे सुनने वाले व्यक्ति पर गहरा प्रभाव पड़ता है। मधुर वाणी में बोला गया अच्छा शब्द, सुनने वाले के लिए औषधि अर्थात् दवा का कार्य करता है। इसके विपरीत कटु वाणी में बोला गया कटु शब्द, सुनने वाले को आघात पहुँचाता है। अतः हमें सोच समझकर ही बातें करना चाहिए।

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काव्य-सौंदर्य

प्रस्तुत पद से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य निम्नलिखित हैं–
1. प्रस्तुत पद में सरल, सुबोध और व्यावहारिक भाषा का प्रयोग किया गया है।
2. यह पद दोहा छंद का अनूठा उदाहरण है।
3. इस पद में बताया गया है, कि जहाँ जिस प्रकार के शब्द की आवश्यकता होती है, वहाँ उसी प्रकार के शब्द का प्रयोग करना चाहिए।
4. जीवन सत्य को उजागर किया गया है।
5. मनुष्य को अपनी वाणी पर नियंत्रण रखने की सलाह दी गयी है।

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आशा है, उपरोक्त जानकारी आपके लिए उपयोगी होगी।
धन्यवाद।
R F Temre
rfcompetition.com

आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।
(I hope, the above information will be useful and important.)
Thank you.
R.F. Tembhre
(Teacher)
EduFavour.Com

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