हम तुम बहुत पुराने साथी
जगती के मधुबन में
दोनों तन-मन से कोमल हैं,
फूल रहे गृह, बन में
हम उपवन का, तुम जन-मन का मधु, कण-कण कर जोड़ो,
देखो मालिन, मुझे न तोड़ो।
हम तुम दोनों में यौवन है
दोनों में आकर्षण
दोनों कल मुरझा जाएँगे
कर क्षण-भर मधुवर्षण
आओ, क्षण-भर हँस खिल मिल लें, कल की कल पर छोड़ो,
देखो मालिन, मुझे न तोड़ो।
जब जग मुझे तोड़ने आता
मैं हँस-हँस रो देता
जब तुम मुझ पर हाथ उठाती
मैं सुधि-बुधि खो देता
हृदय तुम्हारा-सा ही मेरा इसको यों न मरोड़ो,
देखो मालिन, मुझे न तोड़ो।
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जो जल बाढ़ै नाव में– कबीरदास
प्रस्तुत पद्यांश 'देखो मालिन, मुझे न तोड़ो' नामक शीर्षक से लिया गया है। इसकी रचना शिवमंगल सिंह 'सुमन' ने की है।
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जो पूर्व में हमको अशिक्षित या असभ्य बता रहे– मैथिलीशरण गुप्त
प्रस्तुत पद्यांश में फूल (पुष्प के जीवन) और मालिन (मनुष्य के जीवन) की समानता का उल्लेख किया गया है।
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आए हौ सिखावन कौं जोग मथुरा तैं तोपै– जगन्नाथ दास 'रत्नाकर'
जगती- संसार, कोमल- सुकुमार, उपवन- बगीचा, मधु- रस, कण-कण- बूँद-बूँद, यौवन- जवानी, मधुवर्षण- मधु (शहद) वर्षा, हँस खिल- हर्षित होकर, जग- संसार, सुधि-बुधि- चेतना या होश-हवास।
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कबीर कुसंग न कीजिये– कबीरदास
फूल मालिन से कहता है कि हे मालिन! इस संसार के मधुबन में हम दोनों बहुत पुराने साथी हैं। हम दोनों ही तन और मन से बहुत कोमल हैं। तुम घर में पल रही हो और मैं वन (जंगल) में पल रहा हूँ। फूल कहता है कि मैं इस बगीचे के और मालिन तुम मानव-मन के मधु का एक-एक कण एकत्रित कर लें। अतः हे मालिन! तुम मुझे मत तोड़ो।
फूल मालिन से कहता है, कि आज हम दोनों युवावस्था में हैं। हम दोनों में ही आकर्षण है। कुछ समय बाद हम दोनों ही मुरझा जाएँगें। अर्थात् फूल मुरझा जायेगा और मालिन की युवावस्था समाप्त हो जाएगी। इसलिए मुरझाने से पहले हम दोनों आनंद की वर्षा कर लें। अतः मालिन (फूल कहता है) तुम मेरे निकट आओ और हम मिलकर आपस में प्रसन्न हो लें। फूल मालिन से प्रार्थना करते हुए कहता है, कि हे मालिन तुम मुझे मत तोड़ो।
फूल कहता है कि जब सांसारिक प्राणी मुझे तोड़ने आते हैं, तो मैं हँसते-हँसते रो पड़ता हूँ। अर्थात मैं सदैव मुस्कुराता रहता हूँ, किंतु जब निर्दयता के साथ मुझे तोड़ लिया जाता है तो मैं रोने पर मजबूर हो जाता हूँ। जब तुम (मालिन) मेरी ओर हाथ बढ़ाती हो तो मैं अपनी चेतना खो बैठता हूँ। मेरा हृदय भी तुम्हारे हृदय के समान कोमल है, इसलिए मुझे इन सांसारिक प्राणियों की तरह मत मरोड़ो। फूल कहता है कि, हे मालिन! तुम मुझे मत तोड़ो।
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हिंदी पद्य साहित्य का इतिहास– आधुनिक काल
प्रस्तुत पद्यांश से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य निम्नलिखित हैं–
1. शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है।
2. अनुप्रास, पुनरूक्तिप्रकाश, मानवीकरण और उपमा अलंकारों का प्रयोग किया गया है।
3. पद-मैत्री का अनोखे ढंग से अंकन किया गया है।
4. प्रकृतिक तथ्यों के उदाहरण दिये गये हैं।
5. पुष्प और मानव के जीवन की समानता को प्रदर्शित किया गया है।
6. मनुष्य के जीवन के वास्तविक सत्य को उजागर किया गया है।
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सुनि सुनि ऊधव की अकह कहानी कान– जगन्नाथ दास 'रत्नाकर'
आशा है, उपरोक्त जानकारी आपके लिए उपयोगी होगी।
धन्यवाद।
R F Temre
rfcompetition.com
आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।
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Thank you.
R.F. Tembhre
(Teacher)
EduFavour.Com
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