जीव विज्ञान की वह शाखा जिसके अंतर्गत जीवधारियों तथा उनके वातावरण के पारस्परिक संबंधों का अध्ययन किया जाता है, 'पारिस्थितिकी' कहलाती है। कार्य और रचना की दृष्टि से विभिन्न जीवों तथा उनके वातावरण की मिली-जुली इकाई को 'पारिस्थितिक-तंत्र' कहा जाता है। पारिस्थितिक तंत्र अथवा पारितंत्र शब्द का प्रयोग सबसे पहले वैज्ञानिक टेन्सले ने किया था। एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र अथवा वास-स्थान में रहने वाली विभिन्न समष्टियों को जैविक समुदाय कहा जाता है। संरचनात्मक दृष्टि से प्रत्येक पारिस्थितिक तंत्र दो घटकों से निर्मित होता है-
1. जैविक घटक
2. अजैविक घटक
1. जैविक घटक ― यह पारिस्थितिक तंत्र के जीवित घटकों को दर्शाते हैं। ये तीन प्रमुख वर्गों में विभाजित किए जाते हैं―
उत्पादक― वे घटक जो अपना भोजन स्वयं निर्मित करते हैं, उत्पादक कहलाते हैं। ये प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया द्वारा ऊर्जा प्राप्त करते हैं। उदाहरण- हरे पौधे, शैवाल आदि।
उपभोक्ता― वे घटक जो उत्पादक द्वारा बनाए गए भोजन का उपयोग करते हैं, उपभोक्ता कहलाते हैं। ये तीन प्रकार के होते हैं:
1. प्राथमिक उपभोक्ता― इसके अंतर्गत वे जीव आते हैं, जो हरे पौधों या उनके किसी भाग का सेवन करते हैं। उदाहरण- बकरी, गाय, भैंस आदि।
2. द्वितीयक उपभोक्ता― इसमें वे जीव आते हैं, जो प्राथमिक उपभोक्ता को अपने भोजन के रूप में ग्रहण करते हैं। उदाहरण- लोमड़ी, मोर, भेड़िया आदि।
3. तृतीयक उपभोक्ता― इसके अंतर्गत वे जीव आते हैं, जो द्वितीयक उपभोक्ता को भोजन के रूप में ग्रहण करते हैं। उदाहरण- शेर, चीता, बाघ आदि।
अपघटक― इस वर्ग के अंतर्गत प्रमुख रूप से कवक एवं जीवाणु आते हैं। ये मृत उत्पादक और उपभोक्ताओं का अपघटन कर उन्हें सरल अकार्बनिक पदार्थों में परिवर्तित कर देते हैं, जिससे मृदा की उर्वरता बनी रहती है।
2. अजैविक घटक ― ये पारिस्थितिक तंत्र के गैर-जीवित घटक होते हैं जो जैविक घटकों के जीवन को प्रभावित करते हैं।
प्रमुख अजैविक घटक― प्रकाश, जल, वायु, तापमान, मृदा, आर्द्रता एवं खनिज तत्व। इन्हीं से जीवन की आधारशिला निर्मित होती है।
अजैविक घटकों के प्रकार―
1. कार्बनिक पदार्थ ― प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, लिपिड आदि।
2. अकार्बनिक पदार्थ ― जल, CO2, O2, नाइट्रेट्स, फॉस्फेट्स आदि।
3. जलवायुवीय कारक ― ताप, वर्षा, आद्र्रता, प्रकाश की तीव्रता आदि।
पारिस्थितिक तंत्र के प्रकार ―
1. स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र ― जैसे वन, घास के मैदान, मरुस्थल।
2. जलिय पारिस्थितिक तंत्र ― जैसे नदी, तालाब, महासागर।
ऊर्जा प्रवाह ― पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा का प्रवाह एक-दिशात्मक होता है, जो सूर्य से उत्पादकों के माध्यम से उपभोक्ताओं और अंततः अपघटकों तक जाता है।
खाद्य श्रृंखला ― पारिस्थितिक तंत्र में जीवों की खाद्य आवश्यकताओं की पूर्ति की एक रेखीय शृंखला होती है जिसे खाद्य श्रृंखला कहते हैं। जैसे- घास → बकरी → बाघ।
खाद्य जाल ― कई खाद्य शृंखलाओं का आपस में जुड़ाव खाद्य जाल कहलाता है। यह पारिस्थितिक तंत्र की जटिलता को दर्शाता है।
जैव-भू-रासायनिक चक्र ― पारिस्थितिक तंत्र में पोषक तत्वों का पुनर्चक्रण जैव भू-रासायनिक चक्र द्वारा होता है। उदाहरण- नाइट्रोजन चक्र, कार्बन चक्र, जल चक्र।
सार― पारिस्थितिक तंत्र की स्थिरता जैविक एवं अजैविक घटकों के सामंजस्य पर निर्भर करती है। इनका संतुलन ही प्रकृति की विविधता और निरंतरता को बनाए रखता है।
आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।
(I hope, the above information will be useful and important.)
Thank you.
R.F. Tembhre
(Teacher)
EduFavour.Com
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