भारतीय इतिहास में गुप्त काल (लगभग 319 ई. से 550 ई.) को 'स्वर्ण काल' (Golden Age) के रूप में जाना जाता है। यह वह युग था जब भारत ने राजनीतिक स्थिरता, सांस्कृतिक उत्कर्ष, साहित्यिक समृद्धि, आर्थिक सम्पन्नता, धार्मिक सहिष्णुता और वैज्ञानिक प्रगति के क्षेत्रों में अभूतपूर्व उन्नति की। गुप्त सम्राटों के शासनकाल में भारतवर्ष ने पुनः एक महान साम्राज्य का स्वरूप धारण किया।
गुप्त काल को भारतीय इतिहास का 'स्वर्ण युग' कहा जाता है। इस काल में कला, साहित्य, विज्ञान, गणित और धर्म के क्षेत्रों में अद्वितीय प्रगति हुई। यह काल सामाजिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक दृष्टि से समृद्ध रहा। चंद्रगुप्त प्रथम, समुद्रगुप्त, चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य जैसे शक्तिशाली शासकों ने राजनीतिक एकता स्थापित की और विदेशी आक्रमणों का सफलतापूर्वक सामना किया।
1. चंद्रगुप्त प्रथम – गुप्त साम्राज्य के संस्थापक।
2. समुद्रगुप्त – जिन्हें 'भारत का नेपोलियन' कहा गया।
3. चंद्रगुप्त द्वितीय (विक्रमादित्य) – जिनके काल में कला और संस्कृति का उत्कर्ष हुआ।
4. कुमारगुप्त और स्कंदगुप्त – जिन्होंने हूणों के आक्रमणों से साम्राज्य की रक्षा की।
गुप्त काल को भारतीय इतिहास का 'स्वर्ण काल' माना जाता है। स्वर्ण काल से तात्पर्य उस काल से हैं जो भारतीय इतिहास के अन्य कालों से अधिक श्रेष्ठ, गौरवपूर्ण और ऐश्वर्यवान रहा है। गुप्त काल में भारत की राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, साहित्य, कला सहित सभी क्षेत्रों में असीमित उन्नति हुई थी। अतः इसे स्वर्ण काल माना जाता है।
1. राजनीतिक एकता का काल― भारत में मौर्य साम्राज्य का पतन होने के बाद देश कई छोटे-छोटे राज्य में विभक्त हो गया था। गुप्त वंश के शासकों ने इन छोटे-छोटे राज्यों को संगठित कर एक बड़े साम्राज्य की स्थापना की। वे भारत में राजनीतिक एकता लाकर इसे पुनः अखंड और सबल राज्य बनाने में सफल हुए थे। उन्होंने भारत को बाह्य आक्रमणों का सामना करने योग्य बनाया। गुप्त सम्राटों ने भारतीय सभ्यता और संस्कृति की रक्षा की और उसे अक्षुण्ण बनाए रखा।
2. महान सम्राटों का काल― गुप्त वंश के अधिकतर शासक महान थे। गुप्त वंश में एक के बाद एक अनेक योग्य, पराक्रमी, दूरदर्शी और साम्राज्यवादी शासक आये और उन्होंने गुप्त साम्राज्य का कुशल नेतृत्व किया। गुप्त काल में भारतवर्ष की बहुत उन्नति हुई। इसलिए गुप्त काल को भारतीय इतिहास का 'स्वर्ण काल' कहा जाता है। गुप्त वंश के प्रथम स्वतंत्र शासक 'चंद्रगुप्त प्रथम' थे। उन्होंने लिच्छवियों के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित किये। लिच्छवियों के सहयोग से गुप्त साम्राज्य को सुदृढ़ता मिली। इनके पश्चात गुप्त वंश के महान शासक 'समुद्रगुप्त' थे। उनकी विजयों के कारण ही उन्हें 'भारत का नेपोलियन' कहा जाता है। इनके बाद के शासक 'चंद्रगुप्त द्वितीय' थे। उन्होंने भारत से न केवल शकों के अस्तित्व को समाप्त किया बल्कि भारत को सम्पूर्ण राजनीतिक एकता प्रदान की। गुप्त वंश के अन्य महान शासक 'कुमारगुप्त' और 'स्कंदगुप्त' थे। उन्होंने पुष्यमित्र और हूणों को परास्त किया और भारत में राष्ट्रीय चेतना जागृत की।
3. धार्मिक सहिष्णुता का काल― गुप्त सम्राट वैष्णव धर्म के अनुयायी थे। किंतु फिर भी उन्होंने धार्मिक सहिष्णुता की नीति को अपनाया। उन्होंने सभी धर्मों को पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान की। वैष्णव होते हुए भी गुप्त सम्राट अपने राज दरबार के राजकीय पद सभी धर्मावलंबियों के लिए खोल रखे थे। गुप्त सम्राटों ने अनेक हिंदू धर्म मंदिर बनवाए। इसके अतिरिक्त उन्होंने गुप्त मठों और बिहारों के निर्माण के लिए राजकीय सहायता भी दी।
4. आदर्श शासन व्यवस्था का काल― गुप्त सम्राटों की शासन व्यवस्था आदर्शमयी और लोक कल्याणकारी भावना से प्रेरित थी। गुप्त सम्राटों ने कुशल प्रशासन व्यवस्था की स्थापना की थी। उन्होंने अपने देश में शांति बनाए रखी। शांति और सुव्यवस्था के वातावरण में गुप्त सम्राटों का व्यापार भी तेजी से विकसित हुआ।
5. साहित्य उन्नति का काल― गुप्त काल में भारतवर्ष की साहित्यिक उन्नति हुई थी। गुप्त सम्राट तलवार चलाने की कला के धनी थे। इसके साथ वे स्वयं भी विद्वान थे। उन्होंने अनेक विद्वानों को अपने राज दरबार में आश्रय दिया था। इसके परिणामस्वरूप गुप्त काल में साहित्यिक उन्नति अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच गई थी। गुप्त काल के प्रमुख साहित्यकार एवं उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं:
1. महाकवि कालिदास – अभिज्ञान शाकुंतलम्, कुमारसंभवम्, मेघदूत, ऋतुसंहार
2. विशाखदत्त – मुद्राराक्षस, देवीचंद्रगुप्तम
3. हरिषेण – प्रयाग प्रशस्ति
4. विष्णु शर्मा – पंचतंत्र
5. भास
6. वराहमिहिर
7. शुद्रक
8. भारवि
9. दंडि आदि।
6. आर्थिक संपन्नता का काल― गुप्त काल आर्थिक दृष्टि से अत्यंत संपन्न था। गुप्त सम्राटों के समय में भारत एक कृषि प्रधान देश था। गुप्त शासकों ने देश में कृषि के विकास पर पर्याप्त ध्यान दिया था। उन्होंने सिंचाई के लिए उचित प्रबंध करवाए थे। परिणामस्वरूप शासन में स्थिरता, गुप्त प्रशासन की कार्यकुशलता, गुप्त शासकों के प्रोत्साहन के कारण गुप्त काल में व्यापार और वाणिज्य का तीव्रता के साथ विकास हुआ। गुप्त सम्राटों के समय में ही भारत का विदेशों से भी व्यापारिक संबंध स्थापित हुआ। तत्कालीन समय के प्रमुख व्यापारिक केंद्र भड़ौच, पाटलिपुत्र, कौशांबी, वैशाली और मथुरा थे। गुप्त काल में सर्वाधिक सोने के सिक्कों का प्रचलन हुआ, जो तत्कालीन समय की आर्थिक समृद्धि को प्रदर्शित करता है।
7. कलाओं के विकास का काल― गुप्त काल में मूर्तिकला, चित्रकला और स्थापत्य कला का विकास हुआ। चित्रकला के अंतर्गत बाघ और अजंता की गुफाएँ प्रसिद्ध हैं। मूर्तिकला के लिए सारनाथ तथा मथुरा से प्राप्त महात्मा बुद्ध की मूर्तियाँ प्रसिद्ध हैं। ये पूर्णतः भारतीय शैली की हैं। वास्तुकला के लिए इस काल में अनेक मंदिर प्रसिद्ध हैं, जैसे – कानपुर का भीतरगाँव मंदिर, देवगढ़ का दशावतार मंदिर, भूमरा का शिव मंदिर आदि।
8. वैज्ञानिक प्रगति का काल― गुप्त काल में कला और साहित्य के साथ-साथ विज्ञान के क्षेत्र में भी अभूतपूर्व प्रगति हुई। तत्कालीन समय के प्रसिद्ध वैज्ञानिक 'आर्यभट्ट' थे। इन्होंने यह प्रतिपादित किया कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है। इसके अतिरिक्त उन्होंने दशमलव प्रणाली का भी आविष्कार किया। इस काल के अन्य महत्वपूर्ण वैज्ञानिक 'वराहमिहिर' और 'ब्रह्मगुप्त' थे। दोनों ही नक्षत्र वैज्ञानिक थे। इस काल में औषधिविज्ञान और चिकित्सा विज्ञान की भी अभूतपूर्व प्रगति हुई। इस पर अनेक ग्रंथों की रचनाएँ की गईं।
गुप्त साम्राज्य का पतन अनेक कारणों से हुआ, जो निम्नलिखित हैं―
1. उत्तराधिकारी शिथिलता― समुद्रगुप्त और चंद्रगुप्त विक्रमादित्य जैसे महान शासकों के बाद कमजोर और अयोग्य उत्तराधिकारी सत्ता में आए।
2. प्रशासनिक विघटन― साम्राज्य के विभिन्न भागों में केंद्रीय नियंत्रण कमजोर पड़ गया, जिससे स्थानीय शासकों ने स्वतंत्रता की भावना विकसित कर ली।
3. विदेशी आक्रमण― हूणों के बार-बार आक्रमण से साम्राज्य की शक्ति क्षीण हुई। स्कंदगुप्त ने तो कुछ समय के लिए उन्हें रोका, किंतु उनके उत्तराधिकारी असफल रहे।
4. आर्थिक दुर्बलता― निरंतर युद्धों, प्रशासनिक खर्चों और विदेशी आक्रमणों के कारण राजकोष खाली होने लगा। सिक्कों की गुणवत्ता भी घट गई।
5. धार्मिक असंतुलन― ब्राह्मणवाद और बौद्ध धर्म के बीच संघर्ष तथा धार्मिक सहिष्णुता की कमी से सामाजिक असंतुलन उत्पन्न हुआ।
6. प्राकृतिक आपदाएँ― कुछ इतिहासकार प्राकृतिक आपदाओं और जलवायु परिवर्तन को भी गुप्त काल की क्षीणता से जोड़ते हैं।
7. क्षेत्रीय शक्तियों का उदय― वाकाटक, मौखरि, पल्लव इत्यादि क्षेत्रीय शक्तियाँ उभरने लगीं, जिससे साम्राज्य का एकीकरण टूटने लगा।
8. सैन्य कमजोरी― बाद के गुप्त शासकों के समय सेना में अनुशासन और पराक्रम की कमी आ गई थी।
गुप्त साम्राज्य का पतन अनेक आंतरिक और बाहरी कारणों के समन्वय से हुआ। कमजोर उत्तराधिकारी, प्रशासनिक विफलता, विदेशी आक्रमण, आर्थिक संकट और क्षेत्रीय शक्तियों के उदय ने इस महान साम्राज्य को धीरे-धीरे समाप्त कर दिया।
1. गुप्त काल में संस्कृत भाषा और ब्राह्मी लिपि का प्रमुखता से प्रयोग हुआ।
2. समुद्रगुप्त का प्रयाग प्रशस्ति लेख उनके महान साम्राज्यवादी अभियान का वर्णन करता है।
3. नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना इसी काल में हुई जो अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त केंद्र बना।
4. अजंता की गुफाओं में चित्रित बौद्ध कथाएँ आज भी कला के सर्वोत्तम उदाहरण मानी जाती हैं।
5. गुप्त युग को "भारत का पुनर्जागरण काल" भी कहा जाता है।
6. गुप्त काल में 'आर्यभट' जैसे महान गणितज्ञ और खगोलशास्त्री ने महत्वपूर्ण खोजें कीं।
7. गुप्त शासकों ने सोने के सिक्कों का प्रचलन बढ़ाया, जिससे उनकी आर्थिक समृद्धि झलकती है।
8. कालिदास जैसे महान कवि और नाटककार इसी युग में हुए, जिन्होंने संस्कृत साहित्य को उत्कर्ष पर पहुँचाया।
9. गुप्त काल में विज्ञान, गणित, खगोल, चिकित्सा, वास्तुकला आदि का अभूतपूर्व विकास हुआ।
10. इस युग को 'शास्त्रों का स्वर्ण युग' भी कहा जाता है, क्योंकि धर्म, दर्शन और साहित्य का विशेष उत्कर्ष हुआ।
आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।
(I hope, the above information will be useful and important.)
Thank you.
R.F. Tembhre
(Teacher)
EduFavour.Com
Recent Posts
Categories
Subcribe
Note― अपनी ईमेल id टाइप कर ही सब्सक्राइब करें। बिना ईमेल id टाइप किये सब्सक्राइब नहीं होगा।