स्तूप बौद्ध धर्म की एक महत्वपूर्ण धार्मिक संरचना है, जिसका शाब्दिक अर्थ होता है 'किसी वस्तु का ढेर'। आरंभ में स्तूप केवल एक साधारण मिट्टी या पत्थर का ढेर होते थे, जिन्हें मृतकों की चिता पर या उनकी अस्थियों के संरक्षण हेतु बनाया जाता था। बाद में, ये ढेर धीरे-धीरे वास्तुकला की अद्भुत संरचनाओं में परिवर्तित हो गए।
बौद्ध धर्म के विकास के साथ-साथ स्तूपों का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी बढ़ा। महात्मा बुद्ध की मृत्यु के पश्चात उनकी अस्थियाँ विभाजित करके विभिन्न स्थानों पर स्तूपों में संरक्षित की गईं। इन स्तूपों को तीर्थस्थल का रूप दिया गया और इनमें भिक्षुओं एवं श्रद्धालुओं द्वारा पूजा-अर्चना की जाने लगी। स्तूप न केवल धार्मिक केंद्र बने, बल्कि वे स्थापत्य कला के उत्कृष्ट उदाहरण भी बने।
प्रत्येक स्तूप अनेक भागों से मिलकर बना होता है, जो उसकी धार्मिक उपयोगिता और वास्तुकला को दर्शाते हैं:
1. वेदिका: यह स्तूप को घेरने वाली रेलिंग होती है जो उसकी सुरक्षा के लिए बनाई जाती थी। इसके चारों ओर परिक्रमा की जाती थी।
2. मेधि: इसे कुर्सी या चबूतरा भी कहा जाता है, जिसके ऊपर स्तूप का निर्माण होता था। यह आधार संरचना को स्थायित्व प्रदान करता था।
3. अण्ड: यह स्तूप का अर्धगोलाकार मुख्य भाग होता था, जो मृतक की चिता या अस्थियों के ऊपर निर्मित होता था।
4. हर्मिका: यह अण्ड के ऊपर स्थित एक छोटा चौकोर भाग होता था जिसमें अस्थियों की रक्षा की जाती थी।
5. छत्र: हर्मिका के ऊपर स्थित छत्र एक धार्मिक प्रतीक होता था जो सम्मान और आध्यात्मिक संरक्षण को दर्शाता था।
6. सोपान: स्तूप की मेधि तक पहुँचने हेतु बनाई गई सीढ़ियाँ जिन्हें सोपान कहा जाता था।
स्तूपों को उनके उद्देश्य और संरक्षित वस्तुओं के आधार पर चार प्रमुख श्रेणियों में बाँटा गया है:
1. शारीरिक स्तूप: इनमें महात्मा बुद्ध के शरीर के अंगों जैसे केश, दाँत आदि या उनसे संबंधित धातुएँ संरक्षित की जाती थीं।
2. पारिभोगिक स्तूप: इनमें बुद्ध द्वारा प्रयोग की गई वस्तुएँ जैसे भिक्षापात्र, वस्त्र (संघाटी), पादुका आदि रखे जाते थे।
3. उद्देशिका स्तूप: ये स्तूप बुद्ध के जीवन की घटनाओं से जुड़ी स्मृति स्थलों पर बनाए जाते थे, जैसे उनके जन्म, ज्ञान प्राप्ति, उपदेश आदि स्थानों पर।
4. पूजार्थक स्तूप: इनका निर्माण मुख्यतः बौद्ध श्रद्धालुओं द्वारा पूजन के उद्देश्य से किया जाता था। ये तीर्थ स्थलों पर स्थापित किए जाते थे।
चैत्य शब्द का अर्थ है 'चिता या पूजा से संबंधित स्थान'। चैत्य वास्तव में एक ऐसा बौद्ध मंदिर होता है जिसमें एक स्तूप समाहित होता है। इनमें भिक्षु पूजा करते थे और स्तूप की परिक्रमा करते थे। विशेष रूप से पूजार्थक स्तूपों को ही चैत्य कहा जाता है।
बौद्ध चैत्यों के समीप स्थित आवासीय परिसर को विहार कहा जाता था। यह भिक्षुओं के रहने और साधना करने के लिए बनाया जाता था। प्रारंभ में ये गुफाओं के रूप में होते थे, परन्तु कालांतर में इनका निर्माण ईंट-पत्थरों से किया जाने लगा।
स्तूप न केवल बौद्ध धर्म की परंपराओं का प्रतीक हैं, बल्कि उन्होंने एशिया भर की स्थापत्य शैली को भी प्रभावित किया। श्रीलंका, थाईलैंड, म्यांमार, नेपाल, तिब्बत आदि देशों में स्तूपों के अनेक रूप देखने को मिलते हैं। भारत में सांची स्तूप, अमरावती स्तूप, भरहुत स्तूप आदि विश्वप्रसिद्ध हैं।
स्तूप केवल एक धार्मिक स्मारक नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक धरोहर भी हैं जो हमें अतीत की धार्मिक आस्थाओं, स्थापत्य कला और बौद्ध जीवन-दर्शन से परिचित कराते हैं। इनका अध्ययन इतिहास, धर्म और कला – तीनों दृष्टियों से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।
(I hope, the above information will be useful and important.)
Thank you.
R.F. Tembhre
(Teacher)
EduFavour.Com
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