महात्मा बुद्ध (गौतम बुद्ध) बौद्ध धर्म के संस्थापक थे। 'बुद्ध' शब्द का अर्थ 'प्रकाशमान' अथवा 'जाग्रत' होता है। महात्मा बुद्ध ने अपने जीवन काल के दौरान सांसारिक समस्याओं का कारण जानने का प्रयास किया। धीरे-धीरे उनके मन में वैराग्य उत्पन्न हुआ और उन्होंने ज्ञान प्राप्त करने के लिए अपने घर का त्याग कर दिया। इसके बाद उन्होंने मोह-माया से मुक्त होकर कठोर तपस्या की एवं परम ज्ञान प्राप्त किया। उन्होंने जो उत्कृष्ट ज्ञान प्राप्त किया, उसे उपदेशों के माध्यम से समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों को दिया। लोग बुद्ध के उपदेशों से प्रभावित हुए तथा बुद्ध के उपदेशों का प्रचार-प्रसार किया। धीरे-धीरे बुद्ध के ज्ञान और उपदेशों ने एक क्रान्ति का रूप ले लिया। यह क्रान्ति आगे चलकर विशाल बौद्ध धर्म बन गई। वर्तमान में दुनिया के करोड़ों लोग बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं।
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महात्मा बुद्ध का जन्म शाक्यों की राजधानी कपिलवस्तु के निकट लुम्बिनी में 563 ईसा पूर्व को हुआ था। उनके बचपन का नाम 'सिद्धार्थ' था। उनके पिता 'शुद्धोधन' कपिलवस्तु के शाक्य गण के प्रधान थे। उनकी माता का नाम 'महामाया देवी' था। वह कोलिय गणराज्य की राजकुमारी थी। सिद्धार्थ के जन्म के सातवें दिन ही उनकी माता की मृत्यु हो गई थी। इसके पश्चात् उनका पालन-पोषण उनकी मौसी 'प्रजापति गौतमी' ने किया था। 16 वर्ष की अवस्था में पहुँचने के बाद सिद्धार्थ का विवाह शाक्य कुल की कन्या 'यशोधरा (भद्रकच्छा)' के साथ करवा दिया गया था। सिद्धार्थ और यशोधरा के पुत्र का नाम 'राहुल' था। सिद्धार्थ के घोड़े का नाम 'कंथक' और सारथी का नाम 'चाण' था।
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अपनी युवावस्था के दौरान सिद्धार्थ ने सांसारिक समस्याओं का कारण जानना चाहा। उनके मन में वृद्ध व्यक्ति, बीमार व्यक्ति, मृत व्यक्ति और सन्यासी (प्रसन्न मुद्रा में) को देखकर वैराग्य उत्पन्न हुआ। 29 वर्ष की आयु में उन्होंने अपने गृह (घर) का त्याग कर दिया। सिद्धार्थ के गृहत्याग को 'महाभिनिष्क्रमण' कहा गया है। गृहत्याग के पश्चात् सर्वप्रथम सिद्धार्थ 'अनुपिय' नाम के आम्र उद्यान (आम के बगीचे) में रुके। इसके पश्चात् वैशाली के निकट उनकी भेंट आचार्य अलार कलाम से हुई। अलार कलाम सांख्य दर्शन के प्रसिद्ध दार्शनिक थे। इनके अतिरिक्त सिद्धार्थ की भेंट धर्माचार्य रूद्रक रामपुत्र से भी हुई। ये दोनों ही व्यक्ति सिद्धार्थ के प्रारम्भिक गुरु थे। अपने दोनों गुरूओं से ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात् सिद्धार्थ ने 6 वर्ष तक अथक परिश्रम किया और घोर तपस्या की। इसके पश्चात् 35 वर्ष की आयु में वैशाख पूर्णिमा की एक रात्रि के दौरान सिद्धार्थ को ज्ञान प्राप्त हुआ। उन्हें बोधि वृक्ष (पीपल वृक्ष) के नीचे तथा निरंजना (पुनपुन) नदी के तट पर ज्ञान प्राप्त हुआ था। इस प्रकार उत्कृष्ट ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात् सिद्धार्थ 'गौतम बुद्ध' कहलाए।
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आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।
(I hope, the above information will be useful and important.)
Thank you.
R.F. Tembhre
(Teacher)
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