मौर्य सम्राटों के शासनकाल से पूर्व भारत पर मगध राजाओं का शासन था। मगध शासकों का साम्राज्य भारत के पश्चिमोत्तर प्रदेश तक विस्तृत नहीं था। अपने शासनकाल के दौरान मगध शासक भारत के अन्य प्रान्तों को अपने साम्राज्य में सम्मिलित कर रहे थे। प्राचीन काल में जिस समय मध्य भारत के राज्य मगध साम्राज्य में सम्मिलित हो रहे थे, उस समय पश्चिमोत्तर भारत के क्षेत्रों में अराजकता और अव्यवस्था का माहौल था। इस क्षेत्र में छोटे-बड़े प्रान्त थे। इन प्रान्तों में कम्बोज, गांधार, मद्र आदि प्रमुख थे। पश्चिमोत्तर भारत के इन क्षेत्रों में कोई एक सार्वभौमिक शक्ति नहीं थी। इस क्षेत्र के सभी प्रान्त आपस में संघर्षरत थे। किसी भी प्रकार एकछत्र शासन नहीं था। ऐसी स्थिति में विदेशी शासकों ने भारत की ओर ध्यान दिया और वे आक्रमण के लिए आकर्षित हुए। फलस्वरूप मौर्य सम्राटों के शासनकाल से पूर्व भारत को दो विदेशी आक्रमणों का सामना करना पड़ा। इनमें हखामनी ईरानी आक्रमण और यूनानी आक्रमण प्रमुख थे। भारत पर सर्वप्रथम विदेशी आक्रमण ईरान देश के हखामनी वंश के राजाओं ने किया था।
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मगध साम्राज्य के राजा– शिशुनाग और कालाशोक
भारत पर आक्रमण करने वाला पहला विदेशी देश 'ईरान' था। ईरान के हखामनी वंश के संस्थापक साइरस द्वितीय (558 ईसा पूर्व से 529 ईसा पूर्व) ने सर्वप्रथम भारत पर आक्रमण किया था। यह आक्रमण असफल रहा। आगे चलकर हखामनी वंश के दारा प्रथम या डेरियस प्रथम (522 ईसा पूर्व से 486 ईसा पूर्व) ने भारत पर आक्रमण किया। यह आक्रमण सफल रहा। ईरानी राजा दारा के सेनापति स्काईलैक्स (यूनानी व्यक्ति) ने सिन्धु नदी से भारतीय समुद्र में उतरकर अरब व मकरान तटों का पता लगाया था। दारा प्रथम ने 516 ईसा पूर्व को सर्वप्रथम भारत के गान्धार प्रान्त को जीतकर फारसी साम्राज्य में सम्मिलित किया था। उसने भारत के पश्चिमोत्तर भाग को अपने साम्राज्य का 20वाँ प्रान्त बनाया था। भारत के कम्बोज पर भी उसका अधिकार हो गया था। दारा प्रथम के अभिलेखों के विवरण के अनुसार सर्वप्रथम उसी ने सिन्धु नदी के तटवर्ती भारतीय भू-भागों को अधिकृत किया था।
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ईरानियों (हखामनी) द्वारा भारतीय क्षेत्रों पर आक्रमण के निम्नलिखित कारण थे–
1. ईरानी सम्राटों के शासनकाल के समय भारत के पश्चिमोत्तर प्रान्तों में अराजकता और अव्यवस्था की परिस्थितियाँ व्याप्त थीं।
2. ईरानी सम्राटों की पश्चिम की ओर स्थिति सुदृढ़ थी।
3. भारत के पश्चिमोत्तर प्रान्त आर्थिक और सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण थे।
4. ईरानी सम्राट दक्षिण एशिया के उत्तरापथ मार्ग पर नियंत्रण करना चाहते थे।
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ईरानी (हखामनी) आक्रमण का भारत पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ा–
1. ईरानियों के आक्रमण से भारत के विभिन्न समुद्री मार्ग खुले, जिससे विदेशी व्यापार को प्रोत्साहन प्राप्त हुआ।
2. पश्चिमोत्तर भारत में ईरान से आई खरोष्ठी लिपि का प्रचार हुआ। यह लिपि दायीं से बायीं ओर लिखी जाती थी। सम्राट अशोक के कुछ अभिलेख इस लिपि में उत्कीर्ण किए गए थे।
3. ईरानियों के भारत में आने से उनकी कुछ संस्कृतियाँ भारत को प्राप्त हुई। उदाहरण के लिए भारत में अभिलेख उत्कीर्ण करने की प्रथा आरम्भ हुई।
4. पश्चिमोत्तर भारत में ईरानियों की अरामेइक लिपि का प्रचार-प्रसार हुआ।
5. ईरानियों के आक्रमण के बाद के काल की वास्तुकला में ईरानी प्रभाव दिखाई देता है। उदाहरण के लिए सम्राट अशोक के शासनकाल के स्मारकों में ईरानी प्रभाव दिखाई देता है, जैसे– घण्टे के आकार के गुम्बद ईरानी प्रतिरूप पर आधारित थे।
6. अशोक के शासनकाल की प्रस्तावना और उसके लिए प्रयुक्त किए गए शब्दों में इरानी प्रभाव दिखाई देता है।
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आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।
(I hope, the above information will be useful and important.)
Thank you.
R.F. Tembhre
(Teacher)
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