भक्तिकाल हिन्दी साहित्य का स्वर्णिम काल माना जाता है। इसे दो धाराओं में वर्गीकृत किया जा सकता है–
1. सगुण धारा
2. निर्गुण धारा।
भक्तिकाल की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं–
1. साकार एवं निराकार ब्रह्म की उपासना।
2. रहस्यवादी कविता का प्रारंभ।
3. आध्यात्मिकता और सदाचार प्रेरणा।
4. लोक कल्याण के पथ पर काव्य का चरमोत्कर्ष।
5. समस्त काव्य शैलियों का प्रयोग।
6. प्रकृति सापेक्ष्य वर्णन।
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भक्तिकाल की इस काव्य धारा के कवियों ने ईश्वर के साकार रूप की लीलाओं का वर्णन किया है। इस काव्य धारा को दो शाखाओं में वर्गीकृत किया जा सकता है–
1. रामभक्ति शाखा
2. कृष्णभक्ति शाखा।
इस शाखा में कवियों ने भगवान श्री राम के जीवन चरित्र को आधार बनाकर लेखन किया था। कवियों ने अपनी रचनाओं के आधार पर समाज को आदर्श मूल्यों, स्वस्थ गुणों, सामाजिक और पारिवारिक मूल्यों की शिक्षा देने का प्रयत्न किया था।
रामभक्ति शाखा के प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं–
1. तुलसीदास– रामचरित मानस
2. अग्रदास– अष्टयाम
3. नाभादास– भक्तमाल
4. केशवदास– रामचन्द्रिका।
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कृष्णभक्ति शाखा में भगवान श्री कृष्ण के चरित्र को आधार बनाकर काव्य रचनाएँ की गई थी। इस शाखा में अष्टछाप के कवि थे।
कृष्णभक्ति शाखा के प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं–
1. सूरदास– सूरसागर
2. मीराबाई– मीराबाई की पदावली
3. रसखान– प्रेम वाटिका।
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जिन कवियों ने ईश्वर को निराकार रूप में अपने काव्य में स्थान दिया, उन्हें निर्गुण धारा के कवि के रूप में जाना जाता है। इस काव्य धारा को दो शाखाओं में वर्गीकृत किया जा सकता है–
1. ज्ञानाश्रयी शाखा
2. प्रेमाश्रयी शाखा।
ज्ञान को ही ईश्वर तक जाने का मार्ग मानकर जिन कवियों ने काव्य साधना की, वे ज्ञानाश्रयी शाखा के कवि हैं।
ज्ञानाश्रयी शाखा के प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं–
1. कबीरदास– बीजक
2. रैदास– गुरु ग्रंथ साहब
3. गुरुनानक।
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वे कवि जिन्होंने प्रेम के माध्यम से ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग खोलना चाहा, वे कवि प्रेमाश्रयी शाखा के अंतर्गत परिगणित होते हैं।
प्रेमाश्रयी शाखा के प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं–
1. मलिक मुहम्मद जायसी– पद्मावत
2. शेख रहीम
3. नसीर।
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आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।
(I hope, the above information will be useful and important.)
Thank you.
R.F. Tembhre
(Teacher)
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