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माटी कहै कुम्हार से – कबीर दास

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अमृतवाणी

माटी कहै कुम्हार से, क्या तू रौंदे मोहि।
एक दिन ऐसा होयगा, मैं रौदोंगी तोहि।।

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शब्दार्थ

माटी- मिट्टी, कहै- कहती है, रौंदे- कुचलना, मोहि- मुझे, होयगा- होगा, तोहि- तुझे।

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सन्दर्भ

प्रस्तुत पद्यांश 'अमृतवाणी' नामक शीर्षक से लिया गया है। इसके रचनाकार 'कबीर दास' हैं।

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प्रसंग

प्रस्तुत पद्यांश में बताया गया है, कि किसी भी व्यक्ति की दुर्बलता का लाभ उठाकर उसे परेशान नहीं करना चाहिए।

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व्याख्या

मिट्टी कुम्हार से कहती है कि आज तुम मुझे निर्बल मानकर कुचल रहे हो। एक दिन मेरा भी वक्त आएगा। मैं तुम्हें कुचलूँगी। अर्थात् कुम्हार की मृत्यु होने के पश्चात् वह मिट्टी में मिल जाएगा। इस उदाहरण के माध्यम से सजग किया गया है कि दुर्बल मानकर किसी भी व्यक्ति को सताना नहीं चाहिए।

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काव्य-सौन्दर्य

प्रस्तुत पद्यांश से सम्बन्धित महत्वपूर्ण तथ्य निम्नलिखित हैं–
1. प्रस्तुत पद्यांश में जीवन के सत्य को उजागर किया गया है।
2. सरल और सुबोध भाषा का प्रयोग किया गया है।
3. प्रस्तुत पद में शांत रस का प्रयोग किया गया है।
4. यह पद दोहा छंद का उदाहरण है।

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5. नई कविता– विशेषताएँ एवं प्रमुख कवि

आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।
(I hope, the above information will be useful and important.)
Thank you.
R.F. Tembhre
(Teacher)
EduFavour.Com

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