s

हिन्दी का इतिहास– द्विवेदी युग (विशेषताएँ एवं कवि)

By: RF Competition   Copy        Share
 (188)         9210

द्विवेदी युग

द्विवेदी युग में कवियों ने अपनी कविताओं में व्यापक रूप से खड़ी बोली का प्रयोग किया। यह युग काव्य में खड़ी बोली के प्रतिष्ठित होने का युग है। इस युग के प्रवर्तक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी हैं। उन्होंने 'सरस्वती' पत्रिका का संपादन किया था। इस पत्रिका में नवजागरण से संबंधित लेखों का प्रकाशन किया गया था। इन्हें पढ़कर कवियों एवं अन्य लोगों को नवजागरण का संदेश प्राप्त हुआ। इस पत्रिका के लेखों के द्वारा कवियों का एक नया समूह तैयार हुआ, जो नवीन विचारों से प्रभावित था। इस काल में प्रबंध काव्य की रचनाएँ की गयीं। इस काल में ब्रजभाषा का प्रयोग कम हो गया। इसके स्थान पर खड़ी बोली का प्रयोग किया जाने लगा। द्विवेदी युग की अवधि में खड़ी बोली को काव्य भाषा के रूप में प्रतिष्ठित किया गया। साथ ही विकसित चेतना की वजह से कविताओं को नवीन आयाम प्राप्त हुआ। द्विवेदी युग में खड़ी बोली व्याकरण सम्मत, परिष्कृत और संस्कारित रूप धारण कर रही थी। इसके साथ ही कवियों की कविताओं में लोक जीवन, प्रकृति एवं राष्ट्रीय भावनाओं की समर्थ अभिव्यक्ति हो रही थी। इस युग में प्रबंध काव्य में कवियों ने पौराणिक तथा ऐतिहासिक कथानक को कविताओं का आधार बनाया। फलस्वरूप इस युग में ऐतिहासिकता व पौराणिकता में भी राष्ट्रीय चेतना और राष्ट्रीय भावना की अभिव्यक्ति देखी जा सकती है।

हिन्दी के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।
हिंदी का इतिहास– भारतेन्दु युग (विशेषताएँ एवं प्रमुख कवि)

द्विवेदी युग की विशेषताएँ

द्विवेदी युग की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं–
1. देश के प्रति समर्पित भाव– द्विवेदी युग में कवियों और लोगों में देश के प्रति समर्पित भाव व्याप्त था। इस युग में देशभक्ति को व्यापक आधार प्राप्त हुआ। इस काल के कवियों ने देशभक्ति से संबंधित अनेक लघु एवं दीर्घ कविताओं की रचनाएँ कीं।
2. खड़ी बोली का प्रयोग– इस युग में ब्रज भाषा का प्रयोग कम हो गया। इसके स्थान पर खड़ी बोली का प्रयोग किया गया। अधिकांश काव्यों की रचनाएँ खड़ी बोली में ही की गयीं। इस युग में खड़ी बोली को अपना सरल, सुबोध, परिष्कृत एवं व्याकरण सम्मत रूप प्राप्त हुआ।
3. अंधविश्वासों एवं रूढ़ियों का विरोध– द्विवेदी युग में कवियों ने अपनी कविताओं में समाज में व्याप्त अंधविश्वासों तथा रूढ़ियों के प्रति विरोध प्रकट किया।
4. प्रकृति का अनोखा चित्रण– इस युग में कवियों ने प्रकृति से संबंधित कविताओं की रचनाएँ कीं। इस युग के काव्यों में प्रकृति का स्वतंत्र रूप में मनोहारी चित्रण प्राप्त होता है। इस युग में कवियों ने प्रकृति के अत्यंत रमणीय चित्र खींचे हैं।
5. मानव मात्र के प्रति प्रेम भावना– द्विवेदी युग में कवियों ने अपनी कविताओं में मानव मात्र के प्रति प्रेम की भावना को अभिव्यक्त किया है।
6. वर्णन प्रधान कविताएँ– 'वर्णन' प्रधानता द्विवेदी युग की कविताओं की अनोखी विशेषता है।

हिन्दी के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।
भज मन चरण कँवल अविनासी– मीराबाई

द्विवेदी युग के महत्वपूर्ण कवि

द्विवेदी युग के प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं–
1. मैथिलीशरण गुप्त– पंचवटी, साकेत, जयद्रथ-वध, यशोधरा, भारत-भारती।
2. माखनलाल चतुर्वेदी– हिमकिरीटिनी, युगचरण, समर्पण, हिमतरंगिणी।
3. महावीर प्रसाद द्विवेदी– सुमन, काव्य मंजूषा।
4. रामनरेश त्रिपाठी– पथिक, स्वप्न, मिलन, मानसी।
5. अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध'– वैदेही वनवास, प्रिय प्रवास, रसकलश, चुभते चौपदे।

हिन्दी के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।
छावते कुटीर कहूँ रम्य जमुना कै तीर– जगन्नाथ दास 'रत्नाकर'

आशा है, उपरोक्त जानकारी आपके लिए उपयोगी होगी।
धन्यवाद।
R F Temre
rfcompetition.com

आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।
(I hope, the above information will be useful and important.)
Thank you.
R.F. Tembhre
(Teacher)
EduFavour.Com

Comments

POST YOUR COMMENT

Categories

Subcribe

Note― अपनी ईमेल id टाइप कर ही सब्सक्राइब करें। बिना ईमेल id टाइप किये सब्सक्राइब नहीं होगा।